क्या होता है सनातन का तात्पर्य

सनातन का तात्पर्य - सनातन विद्या - शीर्ष ज्योतिषी अनुराग आनंद

1. सनातन शब्द के संधि विछेद द्वारा सनातन का तात्पर्य

यह नांगलोई में सनातन विद्या के शीर्ष ज्योतिषी अनुराग आनंद जी के अनुसार सनातन शब्द दो शब्दों को मिलाकर बना है। जिसमे एक है सन् और दूसरा तन, जिसका संधि विछेद सन्+आ+तन इस प्रकार से होगा जहा सन् का अर्थ है ग्रहण करना और तन का अर्थ है शरीर अर्थात बॉडी । जैसा की हम सभी जानते है कि हमारा शरीर हमारे जन्म के पश्चात सर्वप्रथम श्वास ग्रहण करता है। अत : वो बॉडी जिसके अंदर सांस आती है या हम यु कहे की जो शरीर स्वास लेता है, सांस लेता है उसे हम सनातन कहते है।

2. सनातन के प्रारम्भ से सनातन का तात्पर्य

सनातन को प्राचीन भी बोला जाता है सबसे प्राचीन। हम इसको दूसरी तरह से देखे तो हम इसको ऐसे मान सकते है की जब प्रथम जीव ने इस धरती पर अपने शरीर के अंदर स्वास लिया होगा सांस लिया होगा उस दिन से सनातन प्रारम्भ हुआ और जिस दिन आखरी जीव इस धरती पर अपने शरीर के अंदर आखरी  सांस लेगा या स्वास लेगा उस दिन सनातन समाप्त हो जाएगा। तो इसलिए ये अनंत है सदियों से है और सदियों तक चलता रहेगा।

3. सनातन है अनंत - सनातन का तात्पर्य

हम यह भी कह सकते है को जो भी जीव इस धरती पर आता है हम उसे सनातनी बोलते है। क्यूंकि वो अपने शरीर के अंदर सांस लेता है जब वो सांस लेता है तब वो सनातनी हो जाता है। इसलिए इस धरती पर जितने भी जीव जन्म लेते  है, हम उन सभी को सनातनी मानते है। इसलिए सनातन शब्द अनंत है , प्राचीन है और हर जगह विद्यमान है।

4. Source: (VS Apte शब्दकोष में सन् का अर्थ है to acquire) - सनातन का तात्पर्य

सनातन का तात्पर्य - सनातन विद्या - शीर्ष ज्योतिषी अनुराग आनंद

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